बेटे का दर्द
बेटे का दर्द


वृक्ष की तरह होते हैं परिवार के लिए माता पिता,
छाया में उनकी ही वंश है फलता फूलता,
निराश हो जाता हूँ मैं अक्सर जब पढ़ता हूँ,
किसी पुत्र ने अपनी माँ का दामन छोड़ दिया,
किसी ने पिता से मुँह मोड़ लिया और
नाता तोड़कर माता पिता से किसी ने,
वृद्धाश्रम में उनको छोड़ दिया।
होते हैं खलनायक जो ऐसी दुखद,
घटनाओं को अंजाम देते हैं और
पुत्रों की कौम को बदनाम करते हैं,
हर बेटा नाकारा नहीं होता,
आज भी कई श्रवण कुमार ज़िंदा हैं,
माता पिता का साथ निभाने को।
वक़्त आये तो गोदी में उन्हें उठाने को,
बोझ नहीं हमारे जीवन के स्त्रोत हैं वह,
बलिदान उनका व्यर्थ ना जाने देंगे,
जहाँ गिरेगा उनका पसीना हम अपना,
पसीना भी बहा देंगे।
बदनामी का दाग दामन से अपने मिटा देंगे,
चलकर कर्तव्य पथ पर हम पूरा कर्ज़ चुका देंगे,
नहीं बन सके श्रवण कुमार अगर,
पदचिन्हों को उनके अपना लेंगे,
नहीं बन सके राम अगर,
आदर्शों को उनके आत्मसात कर लेंगे।
ऊँगली पकड़कर चलते थे जिनकी,
लाठी स्वयं को उनकी बना लेंगे,
दिल चाहता है बनकर माली,
वृक्ष की करें रखवाली,
मालन भी अगर हाथ बढ़ा दे।
दिल से उन्हें अपना ले,
और वृक्ष को टूटने से बचा ले,
तो बेटों का पथ सहज होगा,
और बुजुर्ग माता पिता को,
पुत्र के साथ पुत्रवधु का प्यार भी नसीब होगा,
देकर ऐसे संस्कार अपनी संतानों को हमारे,
वृद्धावस्था का पथ भी कांटों से नहीं,
अपितु पुष्पों से फिर सजा होगा,
एक पुत्र होने के नाते,
करता हूं मैं ये आव्हान,
दाग लगा है जो हम पर,
उस दाग को मिटाना होगा,
माता पिता को वृद्धाश्रम से नहीं अपितु,
अपने घर से अपने कंधों पर प्यार और
सम्मान सहित विदा करना होगा।