बेरोजगारी
बेरोजगारी
कैसी है बेबसी कैसी ये लाचारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।
क्षुधा अपनी मिटाने को
क्या न करती दुनिया सारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।
रोजी-रोटी की तलाश में
भटकती युवा पीढ़ी हमारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।
दिखती नहीं पेट की ज्वाला
पर जलना इनका जारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।
सूनी है बस्ती सूनी हैं सड़कें
सहमी-सहमी दुनिया सारी है
देखो आज एक और जिंदगी
भूख से अपने हारी है
कल न जाने किसकी बारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।
मासूम बचपने पर भी भूख पड़ी भारी है
जिधर देखो उधर बालश्रम जारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।
किस से कहें हम दर्द अपना
कोई न लेता सुध हमारी है
दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।