Sunil Kumar

Abstract Tragedy

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Sunil Kumar

Abstract Tragedy

बेरोजगारी

बेरोजगारी

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कैसी है बेबसी कैसी ये लाचारी है 

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।

क्षुधा अपनी मिटाने को 

क्या न करती दुनिया सारी है

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।


रोजी-रोटी की तलाश में 

भटकती युवा पीढ़ी हमारी है

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।

दिखती नहीं पेट की ज्वाला

पर जलना इनका जारी है

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।


सूनी है बस्ती सूनी हैं सड़कें

सहमी-सहमी दुनिया सारी है

देखो आज एक और जिंदगी

भूख से अपने हारी है 

कल न जाने किसकी बारी है

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।


मासूम बचपने पर भी भूख पड़ी भारी है

जिधर देखो उधर बालश्रम जारी है

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।

किस से कहें हम दर्द अपना

कोई न लेता सुध हमारी है

दिन-ब-दिन बढ़ती बेरोजगारी है।


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