बेनाम
बेनाम
गर्दिशों में जब अंगारे थे,
वहां तुम नहीं, वो थे,
सड़के जब महीने-दर-महीने सुनसान थे,
वहां तुम नहीं, वो थे,
खाई गोली जिन मासूम जिस्मों ने ,
वो तुम्हारे नहीं, उनके थे,
गोलियां जिन्होंने चलाई थी उनपे,
वो अलबत्ता उनके नहीं, तुम्हारे थे
मदद मांगी थी उन्होंने कुछ अरसे पहले,
मदद तो की तुमने पर,
उनके घर पे घुस बैठ गए
ऐसी भी क्या मेहमान नवाज़ी,
के तुम मेहमान से, यूँ लुटेरे बन गए
तुम वो जो कागज़ों में ही उन्हें जानते हो ,
और वो कागज़ उनके, जो तुम्हारे मुस्तकबिल का खुदाई है
तुम्हारा ख़ुदा वो, जो चंद रईसों में बिक गया है,
वो जो, हवा के सुहाने रुख को दहशत में बदलता है
ज़ालिम वो , ज़ालिम तुम,
जिनकी सो
च उनके लहू में डूबी है
अगर इंसानियत ही नहीं तुम में,
तो मैं क्यों तुम्हारा हिस्सा हूँ ?
शायद इसलिए के मैं तुम्हारा ही खून हूँ
फिर क्यों मेरा दिल उनके लिए रोता है
और तुम्हारा उनके खून के प्यासा ?
क्या जानते हो तुम उन्हें करीब से?
क्या उनके घर जा कावा पिया है कभी ?
क्या उनके छोटे बच्चों को,
जिनकी नन्ही छाती में गोलियां चलायी थी तुमने ,
कभी उनकी किलकारियां सुनी है ?
गर्दिशों में जब अंगारे थे,
वहां तुम नहीं, वो थे,
सड़के जब महीने-दर-महीने सुनसान थे,
वहां तुम नहीं, वो थे,
खाई गोली जिन मासूम जिस्मों ने ,
वो तुम्हारे नहीं, उनके थे,
गोलियां जिन्होंने चलाई थी उनपे,
वो अलबत्ता उनके नहीं, तुम्हारे थे.....