STORYMIRROR

सोनी गुप्ता

Abstract Romance Inspirational

4  

सोनी गुप्ता

Abstract Romance Inspirational

बेखबर

बेखबर

1 min
198

बेखबर बनते हो

छिपती ये आंखें तुम्हारी बताती है

देखकर मुझे नजरें जब चुराती हो

टूटती खुमारी उजास सा छाया है 

बेखबर बन विस्मृत सपना दिखाया है 

क्या राज छुपा है इसमें तुम्हारा

बेखबर बन दिल चुराया है

भावपूर्ण शब्दों से 

आज रच दिया तुमने जैसे कोई गीत

तुम ही हो मेरा स्वर और संगीत 

क्या खुशी और क्या गम 

सब तुमने बांटे हमारे संग

देकर हसीन ख्वाबों की चाह

आज क्यों जी चुराते हो

बेखबर बनकर हमें क्यों सताते हो

बयां करने को बहुत सी बातें हैं

आज सब जता दे तुमसे हम सोचते हैं 

हर लम्हे तुम्हारे प्यार का एहसास है

 बेखबर तुम पर हमें तुमसे ही प्यार है

आईने की आंखों में तुमको ही देखा है

बस अब इस दर्पण को जहन में उतारना है

तुमसे मिलकर हमें बहुत कुछ कहना है! ! 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract