STORYMIRROR

PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Tragedy Classics

4  

PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Tragedy Classics

बदलते वक्त में

बदलते वक्त में

1 min
234


वो चमकते हुए दिए

वो पटाखों की आवाजें

आज भी वही हैं

मगर दिल के ख्यालात बदल गए हैं

लोग बदल गए हैं

दुनियाँ बदल गई है

रिश्तों की परिभाषा बदल गई है


कोई खोया है

अपनी दुनियां में

तो खोया डिजिटल दुनियां में

फिक्र यहाँ अब किसको किसकी

अकेले हैं हम उम्र के साये में

जीने को पल ही कहाँ

व्यस्त हैं पैसों के साये में


त्यौहारों का मतलब बदल गया

चलन जिंदगी का बदल गया

कोई किसी को याद नहीं

मतलब का मतलब बदल गया

जो प्यार जो दुलार

कल तक त्यौहार की पहचान था

बदलते वक्त में


हर कोई खुद से ही अनजान था

पकवान आज भी वही हैं 

मगर वो मिठास कहाँ

नींद गहरी लेने के लिए

आँगन में वो नीम का पेड़ कहाँ


कहाँ खोजें अब वो रास्ता 

जहाँ अपने मिलें

प्यार से गले लगाने वाले 

सुकून भरे अहसास मिलें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract