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Raja Sekhar CH V

Tragedy

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Raja Sekhar CH V

Tragedy

बदलता समाज

बदलता समाज

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बदल रहा है समाज का साज़,

बदल रहा है जन का मिजाज़,

सच्चाई सुनकर होते हैं नाराज़,

जुर्म पर नहीं करते हैं ऐतराज़ |१|


हुकूमत करती रहे ज़्यादती,

अवाम बन चुकी जो बपौती,

फसादों के बीज बोती रहती,

माहिरों की राय कभी न लेती |२|


महात्माओं को जहाँ गोली मारी जाए,

गुनहगारों की जहाँ जी-हुज़ूरी हो जाए,

आस पास मुल्क को जहाँ कोसा जाए,

मज़हब का गलत इस्तेमाल किया जाए |३|


खास आदमी को मिले मलाई मक्खन,

आम आदमी को मिले धुलाई ढक्कन,

बढ़ता ही जाए सिर्फ़ धोकेबाज़ी ग़बन,

बदलते समाज में लाना है नया मंथन |४|


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