बदलता समाज
बदलता समाज
बदल रहा है समाज का साज़,
बदल रहा है जन का मिजाज़,
सच्चाई सुनकर होते हैं नाराज़,
जुर्म पर नहीं करते हैं ऐतराज़ |१|
हुकूमत करती रहे ज़्यादती,
अवाम बन चुकी जो बपौती,
फसादों के बीज बोती रहती,
माहिरों की राय कभी न लेती |२|
महात्माओं को जहाँ गोली मारी जाए,
गुनहगारों की जहाँ जी-हुज़ूरी हो जाए,
आस पास मुल्क को जहाँ कोसा जाए,
मज़हब का गलत इस्तेमाल किया जाए |३|
खास आदमी को मिले मलाई मक्खन,
आम आदमी को मिले धुलाई ढक्कन,
बढ़ता ही जाए सिर्फ़ धोकेबाज़ी ग़बन,
बदलते समाज में लाना है नया मंथन |४|
