बदल आचरण रोकें विनाश
बदल आचरण रोकें विनाश
जगत में पूर्ण स्वस्थ होवें सब,
शुभता से भरा हो वातावरण।
होगा दूर करना हमें असंतुलन,
करना है संतुलित ये पर्यावरण।
मगर हमें इस सुधार के हित,
बदलना होगा निज आचरण।
शरीर स्वस्थ रह पाएगा तभी,
सब अंगों में है जो समन्वयन।
बहुत जरूरी है ये समन्वयन,
कुटुंब में रखें सभी कुटुंब जन।
समन्वित होकर ही रह पाएगा,
समग्र रूप में शुभ पर्यावरण।
लोभ लिप्सा स्वार्थ भाव की,
कारण इस असंतुलन का है।
असंतुलन ही जननी जनक ,
अस्तित्व के ही संकट का है।
निश्चित ही क्रमिक विनाश है,
जो बदला न हमने आचरण।
त्याग दूसरे करें त्यागें ऐसे भाव,
दूसरे लें प्रेरणा सदा करें वे काम।
अहंकार से सदा ही हम बचे रहें,
कभी न कामना करें कि होगा नाम।
सर्व हित के सतत् करें अथक प्रयास,
सफलता चूमेगी निश्चित आपके चरण।
विकास के नाम पर हम हैं कर रहे,
प्रकृति मां का अनवरत ही विनाश।
पादप जीव प्रजाति बहु लुप्त हो,
इंगित करतीं हो रहा सतत् है नाश।
अस्तित्व और सर्वनाश से किसी,
हमें एक का ही करना होगा वरण।
सर्वश्रेष्ठता के झूठा दम्भ है हमें,
है सर्वनाश की हमें पूरी ही खबर।
उपदेश दे रहे हैं सबको सभी ही,
अधिसंख्य न छोड़ते हैं खुद डगर।
न बच सकेंगे प्रकृति मां के कोप से,
हम न बदल सके जो निज आचरण।
भाव सर्वे भवन्तु सुखिन: का हो,
तब ही सब रह पाएंगे सदा सुखी।
जो सोच वसुधैव कुटुंबकम् की रहे,
तब कोई भी न होगा कभी दुखी।
त्याग दधीचि सा भगीरथ प्रयास संग,
नि:संदेह सुधरेगा ब्रह्माण्ड-वातावरण।