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Jyoti Deshmukh

Fantasy

4  

Jyoti Deshmukh

Fantasy

बचपन

बचपन

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वो बचपन के दिन याद आते 

भूले बिसरे वो ज़माने आते 

यादों के झरोखों से कुछ पल चुरा ले 

आओ बचपन की यादों को आँचल में छुपा ले 

कभी फ़ुरसत के लम्हों में झाँकती आंखें वो पुरानी बचपन की यादें 

वो बीते पल वो प्यारे लम्हे 

दिल को गुदगुदाने 

वो बचपन की मस्ती 

वो प्यार भरी बचपन की शरारत


वो गिली डंडा का खेल, वो गुड़िया का ब्याह रचाने 

कभी पिकनिक में खिचड़ी बनाना 

वो दूर तक दौड़ लगाना 

वो भाई बहनों का एकत्र होकर ताश खेलना 

वो बारिश के पानी में कागज की कश्ती को चलते हुए निहारना 

और बारिश में मेढक का फुदकते हुए देखना 

ये सब आज भी दिल को गुदगुदा जाते 

वो बचपन के दिन याद आते 


कभी बाग में बैठकर भविष्य के सपने बुनना 

फूलों के गहने बनाना उसे पहन इतराना 

किसी के रूठ जाने पर उसे घण्टों मनाना 

मखमली कीड़ों को डिबिया में बंद कर 

उसके उड़ने की कल्पना करना 

ये सुनहरी यादों को कहीं सीलन न लगे 

इसलिए कल्पना के रंग में भिगोकर फिर जीवंत करना 

वो बचपन के दिन याद आते 


वो बाबा की डांट माँ का दुलार 

दादा-दादी का पुचकार ना 

वो दादी का किस्से, कहानियाँ सुनाना 

मित्रों के संग हंसना गाना 

दौड़ सड़क पर शोर मचाना 

खूब धमाल हल्ला-गुल्ला 

कंकड मार फेरी वाले को सताना 

वो बचपन के दिन याद आते 


लालटेन उजियारा में पढ़ना, खेलकर कभी न थकान 

गाँव-गली घूम घूम कर पहिये चलाना 

गिली मिट्टी में छोटे बड़े घरौंदे बनाना 


वो अबोध बचपन, बेफिक्र होकर जीना न किसी का डर 

ना स्वार्थ, ना तकरार ना द्वेष का कोई मेल 

बस दिलों में निश्चल प्रेम 

वो बचपन के दिन याद आते 


छोटी छोटी चीजों में खुशियाँ थी बड़ी बड़ी

हर बात पर मिलती शाबाशी घड़ी घड़ी 

ना कोई परेशानी का मेला 

ना ज़िम्मेदारी का था झमेला 

है हकीकत यहां वो बचपन लौटकर न आनेवाला 

कठोर मगर यही सच्चाई 

बचपन की याद यू चली आयी 

आँखों में पानी और मधुर स्मृतियाँ सारी फिर से याद आयी 

वो बचपन के दिन याद आते 



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