बचपन के वो दिन
बचपन के वो दिन


वो बचपन का दिन भी कितना सुहाना था
बस खुशियों से भरा हमारा आशियाना था
भाई बहनों संग मीठी नोकझोंक होती थी
पापा का दुलार और मां की गोद होती थी
दादा- दादी की कहानियों का भण्डार था
कितना निश्छल बचपन का वह संसार था
घर पर हर रोज दोस्तों का आना जाना था
मोबाइल -लैपटॉप का नहीं वो जमाना था
घड़ी न थी पर समय सबके पास रहता था
वो हर दिन हर पल कितना खास होता था
हंसने की कोई वजह ना ढूंढनी पड़ती थी
बचपन की दुनिया प्यारी हुआ करती थी
छल कपट से दूर खट्टा मीठा पल होता था
न पाने की आशा न खोने का डर होता था
बरसात आती कागज की कश्ती बनती थी
बारिश में भीग कर हमारी मस्ती चलती थी
गमों के बादल से कोई वास्ता नहीं होता था
गुस्सा दिल में नहीं सिर्फ चेहरे पर आता था
समझ नहीं थी हमें फिर भी मन सच्चा था
वो बचपन का दिन भी कितना अच्छा था
काश बचपन के वो दिन फिर से लौट आए
जिसे याद कर सदा होठों पर मुस्कान आए।