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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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बात कतरे की रही

बात कतरे की रही

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बात कतरे की रही, लो वो समुन्दर लाया

 फिर खुली आंख में, नायाब सा सपना लाया


बेहिसाब परेशान थे, मेरे अदब के लोग

बेझिझक, आया, और हर जवाब लाया


रात इठला रही थी, अपनी काली रंगत पर

वो आधी रात आया, और फिर सुबह लाया


मौज दरिया भी रहा, दरिया में टापू भी 

डूबने वालों को बारी बारी पास लाया


कोई कुछ भी कहे, हो गये हम उसके

हालात जैसे रहे, प्रेम का ही राग लाया


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