बाढ़
बाढ़

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गिर रहे पहाड़ों से पत्थर
हो गए घरौंदे जमींदौज
सड़कें दलाने छज्जे सब
बने हुये पानी का हौज
वो घर गिरा ज़मीन पे
ये बस जा गिरी है पानी में
इधर कोई पुल टूटा
उधर ज़िंदगी पानी में
पर्वतों से मैदानों तक
मचा हुआ है हाहाकार
नदियों में ऐसा उठा ज्वार
सर्वत्र मची है चीख-पुकार
भूखे-प्यासे बेबस सब जन
शिविरों में रहने को मजबूर
ये कैसी आपद- विपदा है
हो गये सबके घर चूर- चूर
जो पानी जीवन देता है
किए उसी ने सब स्वप्न भग्न
अब बची नहीं कोई जगह शेष
स्वयं देवता भी है जलमग्न