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Pankaj Kumar

Abstract

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Pankaj Kumar

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बालक का विज्ञान

बालक का विज्ञान

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बच्चे तो बच्चे होते हैं 

मन के भी सच्चे होते हैं 

छल ना कपट ना 

बेफिक्र, थोड़े कच्चे होते हैं

 

अब कहाँ ये सब बातें,

ये बातें हैं पुरानी 

बच्चों को भी है परेशानी 


कुछ बेचारे कुपोषण के मारे 

जन्म के पहले जन्म के बाद 

जिसने किया इनका जीवन बर्बाद 

कुछ जो सही दुनिया में आये 

मां बाप के है झगड़ो के सताये 


आगे बढ़ने की दौड़ में 

देते ना बिलकुल इनपर ध्यान 

धीरे से उसने पैर जमाया 

बोले तोतली बोली अंजान

ये है तुम्हारा बाल नादान


स्कूल जाने का समय है आया 

भारी बस्तों ने कन्धों को झुकाया 

नन्हे मन की व्यथा न समझे 

रहते सब इनसे अंजान 

अक्षरों की दुनिया में आके 

फटी आँखों से पुस्तक ताके

 

बड़ी छोटी ये ऐ-बी-सी-डी 

समझे कैसे छोटा सा जी 

उलझन में रहता सुबह और शाम 

ये है तुम्हारा बाल नादान


नंबरो की फिर दौड़ में आकर 

फस गया ये अकेला जाकर 

टीचर भी बड़ा शोर मचाए 

घर में सब चीखे चिल्लाये 

कैसे बचाए ये अपनी जान 

ये है तुम्हारा बाल नादान


खेलने को मन है तरसे 

निकले न फिर भी सबके डर से 

पापा की शानो शौकत जान 

घुटते है देखो उसके प्राण 

हाल बड़ा बेहाल है इसका 

मन ना कोई समझे जिसका

 

प्यार से जो कोई पास बुलाए 

गले लगा के मन छू जाये 

कुछ कर न बैठे थोड़ा दो ध्यान 

ये है तुम्हारा बाल नादान 


उसकी मुश्किल हल करने को 

दिल में उसके बल भरने को 

सेहत भी तंदरुस्त बनाये 

कमी कहाँ है उसको सुलझाए 

मन की पीड़ा जकड़ लेता है


चेहरे पर जो है पकड़ लेता है 

इस बालक की कहाँ है मुस्कान 

उसके हाव भाव से जाये जान 

उसके कंधे पर रख के हाथ 

बोले डरने की क्या है बात 

मैं जो हूँ मेरी बात को मान 

डर मत मेरे बाल नादान 


जो उसका हमदर्द है आया 

उसकी व्यथा को दूर भगाया 

आओ करे उसका सम्मान 

वो है उसका " बाल मनोविज्ञान "

जो बालक को जाये जान 

मुश्किल करदे उसकी आसान 


वो है उसका "बाल मनोविज्ञान"

वो है उसका "बाल मनोविज्ञान"।


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