बाकी रखा ही नहीं अब
बाकी रखा ही नहीं अब
भेद तुम्हारा, खोलने को रहा ही नहीं अब,
शब्दों में पिरो के मोती,
तुमने कुछ बोलने को बाकी रखा ही नहीं अब।
कच्चे धागे सा, मजबूत बंधन बना ही नहीं अब,
दिलों से दिलों के तार जोड़ के,
तुमने कुछ बोलने को बाकी रखा ही नहीं अब।
सुबह का सूरज, जलन देता ही नहीं अब,
खुशनुमा सा माहौल बना के,
तुमने कुछ बोलने को बाकी रखा ही नहीं अब।
मोहब्बत के आसमां से छूटे ही नहीं अब,
सितारों से महफ़िल सज़ा के,
तुमने कुछ बोलने को बाकी रखा ही नहीं अब।