बादलों से होती बातें ।
बादलों से होती बातें ।
शीर्षक: बादलों से होती बातें ।।
कई दिन गुजारी, कई रातें,
बादलों से हम करके बातें।
वादियों में बैठ चंदा को चुपचाप,
देखा है सपनों को बरसाते।
तन्हाइयों की चादर ओढ़े,
बीते लम्हों की धुन में खोए।
कुछ भूली-बिसरी यादें आईं,
जैसे बीते कल की परछाईं।
एक तस्वीर थी, धुंधली सी,
जिसमें मुस्कान थी अधूरी सी।
कभी उसका हँसना, कभी रोना,
अब बस है स्मृतियों का कोना।
बादलों में ढूँढ़ते चेहरा तेरा,
वो आवाज़ जो देती
था सहारा मेरा।
हर गड़गड़ाहट में सुनता हूँ तुझे,
हर बिजलियों में
तू दिखाई दे मु
झे।
तू नहीं कहीं, फिर भी
तू हरदम है पास मेरे,
हवा के साथ तेरा
एहसास होता मुझे।
कभी सर्द सी लगती है तू, तो
कभी धूप-छाँव सी जगती है तू।
मैंने पूछा चाँद से तेरा नाम क्या,
वो भी चुप रहा, बोला
तुझे उससे काम क्या।
और मुस्कुरा कर छुप गया
बादलों में कहीं,
और तू जैसे खो गई
मेरी सवालों में कहीं।।
इन रातों की तन्हा,
परछाइयों में,
खुद से भी कर ली,
सच्ची सगाइयाँ।
अब सवाल नहीं करता
हूँ समय से,
बस बातें करता हूँ
नमी भरी हवाईयों से।।
कई दिन बीते हैं, कई रातें,
अब भी करते हैं हम उनसे बातें।
पर आज जब बारिश
गिरती है चुपचाप,
तू भी बरसती है,
मेरी यादों के साथ।।
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
विरमगांव, गुजरात।

