अव्यक्त प्रेम भावना
अव्यक्त प्रेम भावना
देखा प्रेम में ये पीड़ा कैसी
कह नहीं पा रहा है प्रेमी
उग आए कॅक्टस के कांटे की तरह
मन में उसके चुभती रहती
सोचा स्वप्न में
प्रेम भावना व्यक्त कर दु
मै तुमसे…
मैं तुमसे...
मैं तुमसे...
तभी प्यार के खटमल उसी की नींद उड़ाई
देखा जो दर्पण में
फिर से वहीं करने लगा प्रयास
कैसे कहूँ प्रेम भावना
हो जाता हूँ उदास
प्यार के लड्डू के कण कण में
मेरे प्रेम की हैं मिठास
इस बात का तुम्हें नहीं एहसास
क्या किया जाय क्या कहा जाय
प्रेमी हैं दुविधा में
अव्यक्त प्रेम भावना
गुम हो गईं ठंड के कोहरे में

