औरत
औरत
औरत जब खुश होती है,
तो घर में फूल खिलते हैं,
जब वो दुखी होती है,
तो घर में मातम छाया रहता है।
औरत अपनी छाँव में,
कितने लोगों को पालती है,
माँ, पत्नी, बहू, बेटी बनके,
सबका लालन-पालन करती है।
औरत की नियति रही है,
दूसरों को देना और झोली भरना,
दुख पीड़ा सब सह लेती है,
तब भी मुस्कुराती रहती है।
औरत जब प्यार बरसाती है,
तब सब कुछ अच्छा होता है,
औरत जब नफरत करती है,
तब सब कुछ बुरा होता है।
औरत वंश बढ़ाती है,
इसके बल पर जग चलता है,
मर्द को जन्म देती है,
और अपनी गोद में पालती है।
औरत अपने हौसले से,
दूसरों की तकदीर बदलती है,
औरत अपनी उन्नति से,
राष्ट्र की उन्नति करती है।।
