औरत
औरत
उजियारे के लिए लड़ती वो,
आज तक अंधेरे में है,
चाहत उसकी, आवश्यकता,
किसी के लिए कुछ भी नही,
उसके शब्द, उसके विचार,
व्यर्थ, सबके लिए बेकार,
उसका फैसला, उसका अधिकार,
फालतू, हर बात में निराधार,
उसकी तुलना होती है, जैसे वस्तु,
उसके वस्त्र से, उसके रंग से,
उसकी जाती क्या है, केसी औरत
पहचानी जाती है, उसके तन से,
उसके मन मे क्या, किसको पड़ी है ?
उसकी उम्र ही तो है, दुश्मन
सभ्य समाज के निर्मित है,
कुछ कठोर नियम उसके लिए,
क्या तुम भी वैसे ही हो,
पढ़ लेते हो लड़की को,
एक नजर में गढ़ देते हो चरित्र,
देख लेते हो उसके बढ़ते शरीर से,
उसका आज कल ओर भविष्य,
होठो की लाली से पहचान जाते हो,
उसका मुंह काला है, या की होना है ?
झाको तो खुदमे,
कोन से जज साहब हो,
नही मिला प्यार तो फेकते तेजॉब हो,
या की कर देते बदनाम उसे,
गली मोहल्लों चौराहों पे,
तुम लोगो का कोई धर्म नही,
ये शब्द बाण है चुभेंगे ही ,
यही सोचो जब किसी पे कासते हो फब्तियां युही,
उसको भी चुभती है,
उसका भी तो मन,
उसका भी तो तन है,
उसके भी विचार, अधिकार है,
उसके भी तो सपनो का आकार है,
जरा सोचो क्योंकि सोचने से ,
बदलता है समाज,
सम्मान से बढ़ता है ,
फैसला तुम्हारा है,
तुम्हे तय करना है,
किसी को गुलाम रखना है,
या उसको आज़ाद करना है ?
