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Sarita Gupta

Drama

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Sarita Gupta

Drama

औरत का उभरना अभी बाकी है

औरत का उभरना अभी बाकी है

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बनाए हैं चित्र,

तुमने गढ़ी हैं मुर्तियाँ,

भरे हैं उनमें रंग,

अपनी कल्पना के।


उन चित्रों और मुर्तियों में,

माँ है, पुत्री है,

पत्नी है, प्रेयसी है,

इन सबसे परे,

बस एक औरत का

गढ़ा जाना अभी बाकी है।


रंगों और पत्थरों में,

मेरा अपना अक्श 

उभरना अभी बाकी है।


रची तुमने कितनी ऋचायें,

काव्य, कथा और कविताएँ,

भरे रंग और उभारी रेखाएँ,

कृतियों में सर्व सौंदर्य समाये,

पर ये सब तुम्हारी कल्पना है।


जिनमें हर्ष है, कल्लोल है,

मेरी करूणा, कामुकता है,

तुम्हारे कलम से कही गयी

मेरी बीती और बात है।


मेरी लेखनी से मेरे संवाद

लिखे जाने अभी बाकी है,

मेरे अंदाज में मेरी बात

कही जानी अभी बाकी है।


सदियों से कहती आयी बहुत कुछ,

मौन से बहती आँखों से, रूधे कंठ से,

मुस्कान में छुपी पीड़ा और व्यंग्य से,

तुम सुन नहीं पाये जो अब तक।


उसकी वो हर 

अनसुनी अबूझ बात,

अभी कही जानी बाकी है।


उसका स्पष्ट कहना

और सुना जाना,

तुम्हारा सुनना-समझना

अभी बाकी है।


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