जीवन सोपान
जीवन सोपान
जीवन के आंगन में ,
अठखेलियाँँ करता मेरा मन,
याद आते हैं वात्सल्य-वाटिका में,
ममतामयी लता पर खिले हुए सुमन,
वसुधा के आँँचल, मातृत्व की कोख में,
नवजात शिशु की किलकारियाँँ और रोदन,
स्नेह के दामन में गिरता-उठता,
अनुभव की उंगलियाँँ थामेंं,
वह निर्दोष अनभिज्ञ बचपन,
जब सपनों के बीच आने वाले,
अपने भी लगते थे दुश्मन।
कैशौर्य और यौवन का,
अनुपम अंतरंग आलिंगन,
वह अद्भुत मधुर-मिलन,
संघर्ष,असफलता और
सफलता के अविस्मरणीय क्षण,
कंधों पर लदी जिम्मेदारियाँँ,
और मन की लगन,
सच, कैसा था वह जोश,
कैसे थे वे प्रण ?
आज थक चुका है,
यह उद्विग्न मन,
चाहिए इस चमन को
थोड़ी- सी शांति,
थोड़ा-सा अमन।
रुकता, मुड़ के देखता एक क्षण,
करता है चिंतन- मनन,
कृतज्ञता से करता है,
ईश्वर को नमन,
एक ठंडी साँँस के साथ,
एक पल थम के सोचता है,
क्या इन्हीं चंद लम्हों को कहते हैं जीवन ?