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Harshita Dawar

Tragedy

5.0  

Harshita Dawar

Tragedy

औरत का कहीं तोल नहीं

औरत का कहीं तोल नहीं

2 mins
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मैं औरत हूं,

बहन हूँ ,बेटी हूं,

मां हूं,अभिमान हूं,

अभिशाप नहीं।

सिर्फ रोटियां सेंकने के लिए काफ़ी नहीं,

चुपचाप अपने सपनों को जलाने के लिए नहीं,

बस जिस्म की प्यास को बुझाने के लिए नहीं,

बस रोज़ रोज़ खुद को खरोंच कर छलकाने आंसू खारा पानी नहीं,

रोज़ ख़ुद पर लांछन लगवा।

ख़ुद को दोषीं ठहराने के लिए नहीं,

बस संदेह हर बात पर,क्रूरूतां का परिणाम नहीं।

साड़ी में लिपटी गुड़िया सी सहनशीलता को त्यागं कर्त्तव्य को कबूंला नहीं।

मन को शांत संतोष कामना से भलाई को अपने दामन में बांध कर जीती रही,

राधा सी मीरा सा विष पीती रही,

पार्वती सी सीता दी कठोर तपस्या करती रही।


द्रोपदी को दांव पर लगाया था,

उसकी की लाज बचाने कौन आया था,

कृष्ण जी! आज मेरी बारी है।

तुम नहीं आओगें तो क्या फिर कहीं महाभारत ना होगा?

कोई द्रोपदी दांव पर ना लगेगी?

कई बार कट्ती रही, रौंदी जाती रही,

सीता की तरह अग्नि परीक्षा से अपना, बहिष्कार करवाती रही।

पूछती हूं मैं ये ,अब कब तक हा कब तक ?

औरत को ही अग्नि परीक्षा देनी होगी ?

सवालों के कटघरे में वो ही खड़ी होगी ?

इज्ज़त उसकी चौखट पर टंगी होगी?

कब तक , हाँ, कब तक ?

कुछ जन्मों से नहीं,

सदियों पुरानी सोच आज भी कायम है,

पुरुष समाज को आज भी पुरुषार्थं आज भी कहीं कायम है,

आज भी बेटे मांगे जाते हैं ,

बेटी को बोझ समझ समाज में तानें कसे जाते हैं ,

बेटी है क्या कर लगी?

दहेज़ की प्रथा माफ़ कर देगी ?

दूल्हें खरीदे जाएंगे तो बेटियां बेची जाएंगी,

कुसूर समाज का नहीं पिछड़ी जातियों की गन्दी सोच का है।

बदसलूकी औरत के हिस्से,जननी होकर वंश बढ़ाए।

बच्चा अगर अच्छा काम करे तो बेटा या बेटी किसकी है?

अगर कहीं कुछ गलत हो तो बेटी जन्मी किसने है?

कठोर शब्दों के तानों से तो बचपन से खिलवाड़ हुआ

बदनामी के दाग़ उसपर ही लगा कर।

उसके आंसुओ को

मगर का नाम से दिया गया।

महज़ ख़्याल नहीं ना ही इतेफाक का नाम देना,

अगर दिल में पाप हो तो अच्छे कर्मो से साफ़ कर लेना।

बेटियां क़िस्मत से होती हैं जहां प्रभु को हो मंज़ूर।

वहीं बेटियां होती हैं।

क़िस्मत से मिली सौगात को बोझ ना समझना।

बदनामी के दागों से उसपर रहमत बख्शना।

कहीं ये ना हो,तुम जीते जी मर जाओ।

बद्दुआएं लग जाती हैं, तो राजा की रजा भी मिट्टी में मिल जाते हैं,

अभिमान तो रावण का भी नहीं रहा,

इस भुलावे में मत जीना। 

गुरूर तो किसी का भी नहीं बचा।

शोक ना समझना,समझ कर समझा लो। 

कुसूर किसी का किसी और पर ना मढ़ना।

क़िस्से कहानियों में ज़िक्र किया करते हैं,

राक्षस भी गुरूर में जिया करते हैं।

पूजे आज भी मंदिरों है और भक्तों के दिलो में, आज भी प्रभु जिया करते हैं,

औरत हूँ ,हां ,औरत हूँ, हां सबपे भारी हूँ।  


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