और सच बोलू ..
और सच बोलू ..
नादान शहर मेरा पूरा लटका भटका हुआ सा घुम रहा है
अपनो को छोड़, हर कोई रिश्ते नाते को वक्त से तोड़ मरोड़ ,
अपनेपन की तलाश में, फेसबुक इंस्टा टिविट्टर पे झुम रहा है।
बिजली की खपत बढ़ चुकी है सच है बीवी भी लड़ चुकी है
बाप कहां है पता नहीं, नन्हा बच्चा फेसबुक पर मम्मी ढूंढ रहा है।
हर तरफ हाहाकार मचा है सच का भी यहां व्यापार बचा है
अब डिग्री लेना भुल बैठे है बिना पढ़े ही युट्यूब स्कूल बैठे है।
पेपरो के नंबर की फिक्र नही, लाइक कम हुए मन ऊप रहा है
कैसे मिलेगा समाज में सत्य अंहिसा को बल, अब तो नंगापन ,
घर घर से सोशल मिडिया पर, बिन पैसो के, खुद ही कूद रहा है।