और कुछ है
और कुछ है
मोहब्बत बन चुके हो तुम
मगर मसरुफियत कुछ है,
निगाहों में तुम्ही-तुम हो,
मगर दिल में और कुछ है।
शराफत छोड़ दी हमने,
अदावत भी नहीं रक्खी,
बेवफा हम कभी न थे,
वफ़ा के नाम पर कुछ है।
फ़ज़ा रूठा, जहां झूठा,
दोस्तों ने ही मुझे लूटा,
मोहब्बत एक चिड़िया है,
सिवा इसके दिल में कुछ है।
मुझे रिन्द होने का शौक़ तो नहीं,
फिर भी असीर था तुम्हारी चाहत का,
तुम्हें कफ़स में रखना ठीक न था,
पर दूर होने की बात और कुछ है।