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Sumit Mandhana

Tragedy Others

4.0  

Sumit Mandhana

Tragedy Others

और आदमी अकेला रह गया...

और आदमी अकेला रह गया...

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दिन-रात जी तोड़ मेहनत करता रहा

परिश्रम की भट्टी में हर पल तपता रहा

तुम्हारा भविष्य सुनहरा बनाने के लिए

सोने से कुंदन में परिवर्तित होता रहा।


जिम्मेदारी के नाम पर छलता रहा

कोल्हू के बैल की तरह चलता रहा

कभी तुम्हारी कभी अपने बच्चों की

सबकी ख्वाहिशें मैं पूरी करता रहा।


जैसा तुम बोली मैं वैसा ही करता रहा

अपनी दिल-ओ-जां तुम पे लुटाता रहा

एक बार भी मैंने पलट कर नहीं देखा

जब चला गया सब तो हाथ मलता रहा।



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