जिम्मेदारी के नाम पर छलता रहा कोल्हू के बैल की तरह चलता रहा जिम्मेदारी के नाम पर छलता रहा कोल्हू के बैल की तरह चलता रहा
चुपके-चुपके इन आँखों में कोई पलता है। सपनों के आँगन में चंदा रोज निकलता है चुपके-चुपके इन आँखों में कोई पलता है। सपनों के आँगन में चंदा रोज निकलता है