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Sumit Mandhana

Abstract Children Stories Tragedy

4.5  

Sumit Mandhana

Abstract Children Stories Tragedy

संवेदनहीन मानव

संवेदनहीन मानव

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एक बेजुबां थी खुराक की तलाश में,

भटक रही थी दर-ब-दर पेट भरने की आस में,

 कुछ निष्ठुर ने ऐसा निर्दयी कृत्य किया, 

विस्फोटक ही दे दिया उसे अनानास में। 


हकीकत से बेचारी वह तो अनजान थी, 

गर्भ में पल रही उसके नन्ही जान थी, 

फल समझकर उसने मौत को था खा लिया, 

काया उसकी पूरी पल में लहूलुहान थी।


चुपचाप वह सब कुछ सहती रही,

दर्द में अपने चिल्लाती चीखती रही,

नहीं आई किसी को तनिक भी उस पर दया,

दो दिन तक ताटिनी मे पीड़ा से तडपती रही। 


फिर भी उसने कहाँ पशुता का परिचय दिया,

फिर भी किसी मानव को कहाँ उसने कष्ट दिया,

चाहती तो मिटा सकती थी ऐसी मानव जात को,

रूदन में लेकिन अपने प्राणों को तज दिया।


इंसानियत को फिर से ऐसो ने शर्मसार है किया,

देश विदेश में सभी ने इनका बहिष्कार है किया,

ये दुष्ट हकदार है कड़ी से कड़ी सजा के,

सभी ने एक आवाज में इस पर सहकार हैं किया।


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