अतरंगी मन के सतरंगी ख़याल
अतरंगी मन के सतरंगी ख़याल
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दिल की छत पर मेला लगता है तुम्हारी यादों का
मैं जश्न मनाते आँखों में भरती हूँ तुम्हारे संग बीते हर लम्हों के रंगीन नज़ारें.!
यादों की बारिश चुस्की अश्कों की
बिस्तर एहसास का, चद्दर मुस्कान की, सिलबटें सजती है साँसों की महक से.!
रात के मद्धम बहते पहर में खयालों की लाली सी
मखमली मेहंदी रचती है रोम-रोम जब याद आती है एक शाम चुंबन सजी
हाँ वो शाम पहले स्पर्श के अनूठे एहसास की.!
वो तुम्हारा करीब आना, हया की लाली से झुके मेरे रुख़सार की नमी को
हौले से उठाकर अपनी हथेलियों से मेरे भाल पर लबों से मोहर लगाते पीना.!
पसीज जाता है तन-मन यादों की आग जब झड़ी लगाते बरसती है.!
पहले इश्क का तोहफा
ये अंगूठी में सजा गौहर रिझाता है तस्वीर ए जाना का भ्रम लुभाता है,
हंसते हो तुम गौहर में बसे जब देखूँ छवि तुम्हारी.!
मेरे सतरंगी खयालों से जलता चाँद हंसता है,
में छिन लेती हूँ छोटा सा टुकड़ा उसके उजले तन से,
बिसात क्या उसकी मेरे मनमीत के आगे.!
छिप गया वो आधा अधूरा दूज का मारा, जब मैं रिक्त सी तुम बिन वो कैसे खिलखिलाए पूरा।।