असुरक्षित बेटियां
असुरक्षित बेटियां
कैसे कह दूं की बेटियां सुरक्षित नहीं है।
बेटियां ही क्यों सुरक्षित कोई भी तो नहीं है।
कैसे कह दूं केवल नर पिशाच घूम रहे हैं।
पिता के चेहरे पर भी तो चिंता के सागर गहरा रहे हैं।
भाई अपनी जवानी में अपने संघर्ष से ज्यादा बहनों की सुरक्षा के लिए घूम रहे हैं।
मां का तो दिल ही घबरा जाता है
जब तक बेटी का फोन नहीं उठ जाता है।
यह पैशाचिक मानसिकता कैसे बन जाती है?
मानवता मानव की क्यों मर जाती है?
क्यों नहीं शोध होते इस विषय पर
मानव की कोमलता लुप्त क्यों हो जाती है?
उसकी चैतन्यता सुप्त क्यों हो जाती है।
पिशाचों सी वीभत्स क्रीड़ा करते हुए वेदना हृदय को क्यों नहीं सताती है?
पाशविकता अपनाते हुए
लोगों की आत्मा क्यों मर जाती है।
आत्मरक्षा के नए अस्त्र ढूंढने से पहले यह शोध क्यों नहीं होता कि दुर्भावनाएं इतनी प्रबल क्यों होती है?
काश टीवी के रिमोट के जैसे एक जीवन का भी रिमोट होता जिस्म बदल देते हम लहूलुहान, क्रूर वीभत्स चित्र
और पूरा संसार ही सुंदर होकर मानवता से परिपूर्ण जिसमें सब होते मित्र।
रिमोट दबाते ही दुर्भावनाएं दूर हो जाती।
धरती पर मानव की यात्रा सुख से पूरी हो जाती।
हम निडर होकर भरते अपने सपनों की उड़ान,
जो कि एक दिन जरूर पूरी हो जाती ।
सुंदर यादें मन से लेकर आत्मा में भी बस जाती।
