अरमान
अरमान
रिश्तों की पोटली मुझसे
अब ना संभाली जाए
खुली गांठ बिखरे अरमान
हर रिश्ता फिसलता जाए।
जतन किए लाखों बांधने के
प्रेम डोर पड़ गई छोटी
देख इन्हें मन घबराए।
लगे विपदा मोहे मोटी
कैसे बचाऊं इनको
कोई आकर मुझे बताए
रिश्तों की पोटली मुझसे।
अब ना संभाली जाए
श्रदधा आंचल में मैंने कैसे
भाव की गांठ लगाई थी
रिश्ते हैं अनमोल सभी ये।
सबको बात समझाई थी
जाने आकर किसने दिल में
नफरत के बीज उगाए
रिश्तों की पोटली मुझसे।
अब ना संभाली जाए
आदर मान अब बीती बातें
कैसे दोबारा लाएं
सिर पर हाथ बुजुर्गों का।
हर बला से हमें बचाएं
दो बोल मीठे बोलने से
दुआओं की बरखा आए
बुजुर्गों के प्रति दिल में।
आओ श्रद्धा के भाव जगाएं
रिश्तों की पोटली मुझसे
मन अब ना संभाली जाए।
