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अनिमा दास

Classics

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अनिमा दास

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अरावली का मार्तण्ड -सॉनेट

अरावली का मार्तण्ड -सॉनेट

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कई भ्रान्तियाँ केवल मुझमें हैं...किंतु अन्य ग्रह में हैं नहीं

जिस दिशा से आता है संदेश...वह मेरी स्मृति में है कहीं

उनके ललाट पर सिंदूरी आभा..मेरा शोणित चुंबन ही था

मेरा उपन्यास... उनके अभेद्य हृदय का... स्पंदन ही था।


मैंने अरावली की शृंखलाओं में...देखा विस्तृत एक इतिहास 

प्रताप, प्रयुद्ध...प्रमीति...से परिवेष्टित देखा एक कारावास

किंतु..निरंतर बहता वह वीरत्व का रक्त.. करता था सिक्त

दुर्ग सी दृढ़ता - अश्रुपूर्ण दृग- रिपु के दर्प से न हुए कभी रिक्त।


क्यूँ हुआ अद्य विधुर ?क्या होगा भविष्य का शीश पराधीन?

क्यूँ कोटि मृत्यु में थी वृद्धता,था यौवन एवं था शैशव भी प्रलीन ?

चितौड़ की विदीर्ण आत्मा न माँगी भिक्षा.. किंतु हुई ध्वस्त

स्वार्थ एवं मोह के साम्राज्य में प्राणों का ही हुआ था अस्त।


नहीं अद्य शाका अथवा जौहर.. है किंतु मानसिंह का छल

यह भूमि अद्य रणभूमि..कहाँ है मार्तण्ड,है कहाँ राष्ट्रप्रेम निश्छल ?


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