चाँद और मैं
चाँद और मैं
ऐ...चाँद...
तुझ पर कोई
नज़्म या कविता लिख दूँ
या तेरे वजूद में
आशिकी भर दूँ
चंद लम्हे हैं बाकी
भोर की लालिमा को
नस-नस में तेरी
खुमार भर दूँ...
है विभोर पंछी
प्रणय में फ़िर भी
तन पर तेरे विरह के
रंग भर दूँ...
वो तो न आए
रात ढल रही है
आ तेरे मन में
बेकसी भर दूँ...
कुछ कह दूँ... कुछ गुनगुना लूँ
रंगीन फ़ूलों में
खुद को छुपा लूँ
रेशमी सपने
चमक रहे हैं
मिलन ये खास
पिया संग बना लूँ...
ये प्यास जो जगी है
चांदनी से निखर जाएगी
उनकी राह में साँसें
यूँ बिखर जाएगी...
रुको तो ज़रा...ऐ चाँद
सुकुन की बाहों में
दो रूहें सिमट जाएगी...
सो जाने दो
मूंदी पलकों में
प्रेम ही प्रेम
भर जाने दो...
ऐ चाँद ज़रा
बहक जाने दो...
ऐ चाँद ज़रा
बहक जाने दो...