प्रकृति
प्रकृति
अक्षुण्ण होता
मेरा सौंदर्य
यदि तेरा रुप
भीष्म न होता ,
अति स्पृहा तेरा
अपराध है
होता ज्ञात तुझे
यदि चिंतन तेरा
शाश्वत होता...।
हूँ अंतर्हित तेरी
बेदनाओं में
प्रवाहित हूँ
तेरे जीवन चक्र में
क्रूरता तेरी प्रचंड है
होता ज्ञात तुझे
यदि संवेदनशील
तेरा आचरण होता ...।
आधुनिकता का
प्रलेपन किया
हुआ विस्मरण
तुझे नैतिकता
प्रलय का घोर
उन्माद मुझमें भी है
होता ज्ञात तुझे
यदि विचार तेरा
धर्म रक्षक होता ।
तेरी सृष्टि का
पंचभूत मैं
मेरी परिधि का
तू सूक्ष्म कण
मेरी श्वास अतृप्त
अनल है
होता ज्ञात तुझे
यदि तेरा जीवन
निस्वार्थ होता ।
हे , अबोध मानव !!
होता ज्ञात तुझे
मैं प्रकृति,
तेरा आधार ,
तेरा अस्तित्व ,
तेरी प्राण सुधा ...।
