आपकी याद में
आपकी याद में
कैसे कहूँ ?
पंछी अकेला अब नीड़ में
करता विलाप
शून्य है आकाश,
शून्य है धरा
मौन पवन का है
व्यथित आलाप।
सप्तसुर में
अब गाती नहीं वीणा
सप्तरंग में हैं
रश्मियाँ उदास
पत्तों की झंकार में
नीरवता की है ध्वनि
बुझ गया है अब
प्रातः का उजास।
यादें होती ही हैं तीक्ष्ण
चुभती हैं
हृदय की गहराई तक
साँसें भी चलती हैं&n
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धीमी पदचाप से
और भी करतीं हैं गाढ़ा
आपकी परछाई को।
जले जा रहे
कुछ सूखे शब्द
आपकी चिट्ठियों के....
बिखरे हुये हैं कविताओं के
भाव अब अधूरी रात में
नहीं ठहरती हैं कल्पनाएँ
अधूरे चाँद में...
सच कहती हूँ
आपकी याद में......
छोड़ जाती हूँ
इस उदास संध्या को
और अधजली मोमबत्ती को
अतीत को, वर्तमान को
इस महाशून्यता में... ..।।