Unveiling the Enchanting Journey of a 14-Year-Old & Discover Life's Secrets Through 'My Slice of Life'. Grab it NOW!!
Unveiling the Enchanting Journey of a 14-Year-Old & Discover Life's Secrets Through 'My Slice of Life'. Grab it NOW!!

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

4  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

अपनों से सजा

अपनों से सजा

1 min
22


अपनो को चाहने की क्या खूब सजा मिली है

भरी बारिश मे जलने की हमको वज़ा मिली है


अब कोई और गम बिल्कुल भी नही सताता है,

अपनों से क्या ख़ूब गम की ये वफ़ा मिली है


हजारों सूर्य के बीच मे वो गम का अंधेरा हूं,

उजालो में रहकर भी तम का घना चेहरा हूं,


रोशनी से भी क्या खूब निशा की ध्वजा मिली है

अपनो को चाहने की क्या ख़ूब सजा मिली है


बहुत लूटा,बहुत दिल टूटा, फिर भी मोह न छूटा,

अपने ही हाथों से तुझे कातिल की त्वचा मिली है


अब रोना-धोना बंद कर,अपना निश्चय दृढ़ कर,

ख़ुद के वजूद से जीने की खुदा से रज़ा मिली है।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Similar hindi poem from Tragedy