अपने में मगन
अपने में मगन
कभी जो रूठ जाऊँ मैं तो
तुम मनाने भी नहीं आते,
कभी मुझसे शिकायत हो
तो कुछ कहने भी नहीं आते।
तुम अपनी दुनिया में मस्त
क्या चल रहा है मेरे मन में,
यह देखने भी नहीं आते हो
न अपने बारे में कुछ बताते।
तुम अपने में जिये जा रहे हो
तुम्हें मेरी कोई ज़रूरत ही नहीं,
बस तुम और तुम्हारी दिनचर्या
इसमें मेरा प्रवेश भी गवारा नहीं।
कभी तुमने सपने दिखाए थे
कभी तुमने मीठी बातें की थी,
वे सब लगता है झूठे सपने थे
जो केवल स्वार्थ सनी बातें थी।
अपने जज़्बातों को ही ऊपर रखा
मेरे एहसासों की अनदेखी की,
तुम अपनी अहंमन्यता में डूबे रहे
अपनी उच्च सत्ता के गर्व में रहे।
