अपने अपने राम
अपने अपने राम
जिनके निज नाम महज से पहुंचे शुचिता के धाम,
है उद्दीपित मर्यादा पुरूषोत्तम तेजवान श्री राम।
त्याग की संपूर्ण मूरत
अलौकिक और सहज सूरत
है जिनका सिंधु समान हृदय
स्वयं महाकाल करें जिनकी विनय
है साधु वस्त्र पर तेज हो
जिनका सूर्य समान
धैर्य से जिनने जग जीता है
मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम।।
एक वचन कि खातिर भला,
राज कौन त्याग सकता है
हो राज पाठ और आराम स्वर्ग सा
छोड़ इन्हे सब एक जगह पर
अविरल छवि रख सकता है।।
जिनके मन में निज माताओं का मान भरा
इस तन से कहीं अधिक पिता का सम्मान भरा,
हो वैदेही हृदय प्रिए जिनकी
जो बात भांप ले उनके हृदय और मन की
लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न जैसे जिनके भाई हो
उनके ऊपर भला विपदा कैसी आई हो
फिर भी हे पुरूषोत्तम तुम
पूरा किए वचन को
एक आदेश कि खातिर गए
चौदह बरस कानन को।
चाहते गर तुम तो विधि भी कहीं ठहर जाती
एक इशारे पर वक्त की सुई कहीं रुक जाती।
पर तुमने मात पिता की खातिर ऐसा निज बलिदान दिया,
त्याग, धैर्य, तप, तेज, शांति का सबको ज्ञान दिया।
जो स्वयं में धाम है, राम नाम से कुछ ऊंचा नहीं,
खोज को जगत चराचर राम सा कोई दूजा नहीं।
फूटे करम बन जाएंगे लेकर महज एक नाम,
देखो ऐसे ऐसे भी होते है सबके अपने राम।
