अपना नहीं
अपना नहीं
सोचा था हमने भी
करते होंगे प्यार हमें,
पर कैसा प्यार यह
करता ही इन्कार यह।
भुलावा था
सपना था
छल था,
मुझे मेरे कोमल भावों को
लेने का षड्यन्त्र था।
बुलाया था प्यार से हमें
बैठाया था गोद में हमें
तेरे मादक स्पर्श ने
भरा था सिहरन से हमें।
समझे थे हम
कोई हमारा भी है
जो हमें प्यार करता है
हमें अपना प्रिय समझता है।
पर
हमने जब बुलाया
वह पास न आयात
भागा दूर ही दूर
जैसे हम कोई हों अजनबी
जैसे उसे हमसे कभी काम न था
कभी हम उसके अपने न थे
कभी उसने हमें दुलराया न था
पास बैठाया न था।
क्या समझूँ इसे
प्यार या अवहेलना
पास बैठाते हो
जब केवल तुम्हीं चाहते हो
अथवा जब चाहो
अजनबी बन जाते हो।
