अपना कब्र
अपना कब्र
हम करते रहे सफर फर्श पर,
हमें पहुंचना था हमेशा अर्श पर
इसी बीच मिले कई रिश्ते और घर,
हमें निभाना पड़ा रिश्ता बार-बार सम्भल कर
कभी यहां तो कभी वहां करते रहे हम मौज उम्र भर,
सोचा, काश न मिलता कभी ग़म हमें मगर
जो सोचा वो हमेशा नहीं होता इस दुनिया पर,
मौज, मस्ती, अपने, पराए, मिली कितनी ही प्रथाएं
इस जीवन पथ पर चल कर।
सब याद रहा हमें मगर
भूल गए जाना है एक दिन सब कुछ छोड़कर,
हम रह गए प्रथाओं में उलझकर
करते रहे बुरा भला हमेशा ना समझ बनकर,
सब याद रहा मगर,
भूल गए जाना है कभी अपना ही कब्र खुदवाकर।
