अपेक्षाओं से आज़ादी
अपेक्षाओं से आज़ादी
हां हम लड़कियां है वही जिसे तुमने बचपन से ही
अपने अपेक्षाओं के दायरे में रखा है ना.....
जिसके पैदा होते साथ ही हर पल
उसे ये एहसास कराया गया कि वो एक लड़की है ......
जैसे जैसे बड़ी होती गयी उसके ऊपर
कभी घर की जिम्मेदारी तो कभी समाज के
नियमों के बंधन में बांधा गया.......
सदी बदली, समय बदला, दिन बदले अगर कुछ नहीं बदला
तो वो है लड़कियों के प्रति हमारी मानसिकता
जो कि आज भी विचारों के कैद में है....
अब हम और हमारे विचार जाने चाहते है
आसमाँ के पार, नहीं चाहते किसी भी क्षेत्र में अपनी हार....
हम अब हर क्षेत्र में बेहतर है, नहीं किसी दायरे के शिकार,
घर के रसोई से लेकर अंतरिक्ष तक को हमने नापा है......
रोटी को चाँद तो कभी चाँद को रोटी की तरह गोल आंका है.....
स्वतंत्र है हम हमें भी है अपनी इच्छा से जीने का अधिकार.....
माँ, बेटी, बहन , पत्नी हर रूप में हमने सिर्फ ममता ही बरसाई है....
फिर भी क्यों हर नारी की किस्मत में तन्हाई है....
छोटी बच्ची हो या हो चालीस पार
हर कोई क्यों है तुम्हारी ओछी मानसिकता का शिकार.....
जब जब हमने प्रेम किया तुमने किया सदैव हमारा तिरस्कार......
हां नहीं है अब हमें ये सब स्वीकार अब हम स्वतंत्र है
सभी अपेक्षाओं से परे नील गगन में उड़ने तैयार....
हमें अब सिर्फ बेलन चलाना ही नहीं सीखना है
अब सीखना है हमें झांसी की तलवार .....
हर बुरी नजर पर हम अब नमक नहीं उतारेंगे,
ज़ख्म देंगे उन्हें फिर नमक उन्हीं पे डालेंगे...
चूड़ी वाले हाथ अब चलना भी जाने है....
तुम हमें क्या स्वतंत्र करोगे हम खुद ही आजादी पाएंगे....
हां हम स्वतंत्र भारत की नारी है,
ममता और वीरता में हम सब पे भारी है.....
हम नारी है.....स्वतंत्र नारी है....
हर नारी को उसकी निजता और स्वतंत्रता का
उतना ही अधिकार है जितना एक पुरुष को....
नारी शक्ति को समर्पित