अंतर्जगत् की यात्रा
अंतर्जगत् की यात्रा
कदम रोकते शूल भी हैं,
समय भी प्रतिकूल है,
कोई संग न इस पल मेरे,
निराशा ही निराशा है
अंधकार ही अंधकार जब,
उजाले की किरण न हो,
अपने भी पराये लगे,
सुकून एक पल न हो,
तब चल दो अपनी अंतर यात्रा पर,
जहाँ हर प्रश्न का हल मिले,
जीवन की सुंदरता का,
अद्भुत आभास यहाँ मिले,
शब्दों से परे यह यात्रा,
प्रेम बस प्रेम मिले,
मौन हो जाती तब वाणी,
इस यात्रा का जो आनंद मिले,
उमड़ते अद्भुत भावों का,
कितना प्यारा सानिध्य मिले,
हर पल फिर तो कण कण में,
बस अनंत का दर्शन मिले,
आओ चले इस यात्रा पर,
जहाँ अद्भुत अपार आनंद मिले।।
