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Usha Gupta

Classics

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Usha Gupta

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अन्तर्द्वन्द

अन्तर्द्वन्द

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निष्कासित किया मस्तिष्क नें मधुर सपनों को

हृदय नें की स्वीकार, दासता मस्तिष्क की,

व्याकुल रहा मन, निष्कासित सपनों के लिये,

शनैंः शनैंः शान्ति ने किया ग्रहण स्थान व्याकुलता का,

हुआ शान्त मन, ज्यों हो शान्त समुद्र भयंकर तूफ़ान से पहले।


सूर्य के रथ पर सवार भागता समय जा टकराया बीती यादों से

भाग पड़ा मन पुन: निष्कासित सपनों की ओर,

तोड़ ज़ंजीरें दासता की........।


चल पड़ा युद्ध भयंकर मन और मस्तिष्क के बीच

वायु वेग को जकड़ लेना है असम्भव,

तो है पाना कठिन विजय मस्तिष्क का मन पर।

सपनों की ओर भागता मन जा टकराया यथार्थ से,

टकटकी लगायें थीं कई जोड़ी आँखें आशा और विश्वास से।


लगी बेड़ीयां मन पर, हुआ विजयी मस्तिष्क

निष्कासित किया पुन: मस्तिष्क नें मधुर सपनों को।


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