अंतरद्वंद
अंतरद्वंद
ये जो रास्तों की मुश्किलें हैं,
बाज़ार के भाव की अटकलें हैं,
जो जानकर भी अनजान है,
तो क्या वह भी बुद्धिमान है,
जो बिखर गया इस रास्तें में,
उसका यहाँ कहाँ अपमान है,
जो निगल गया हर शब्द को,
उस शब्द की कहाँ पहचान है,
शोर हर तरफ जिस्मानी भूख है,
उसमे कोई ढूंढ़ता तेरा मेरा रूप है,
अगर किसी को कोई मिल गया,
क्या हुआ थोड़ा चेहरा बदल गया,
आवाज़ आती खुद अंतरद्वंद की,
मैं धूल गया मिटटी में मिल गया,
ऐ खुदा ये बता, ये गुनाह या तेरा रहम,
खुद में कोई झांकता क्यों नहीं है,
क्यों इंसान में छुपा हैवान खिल गया,
ये जो रास्तों की मुश्किलें हैं,
बाजार के भाव की अटकलें हैं...