अंतिम क्षण
अंतिम क्षण
“अंतिम क्षण" में सोच रहा मुर्दा, लेटा यूँ,
जीवनभर तो घास न डाली,अब रोएँ सब क्यूँ।
जिन अपनों को देखने को ,मन अकुलाता था भारी,
आज छाती पीट-पीट रो रहे,वे सब बारी-बारी।
आँखों में घड़ियाली आँसू,मन में हर्ष अपार,
कब निबटे अंतिम कारज, तो जानें,
किसे मिली कितनी जायदाद।
प्यार, अपनत्व तो सब धरा रह गया,
इस मतलबी, भागती दुनिया में रिश्ता भी
अब डिजिटल होकर रह गया।