अंकुर तेरे मेरे प्यार के
अंकुर तेरे मेरे प्यार के


मन में हो जाते है पल्लवित
अंकुर तेरे मेरे प्यार के।
जब जब बरखा की बूंदें
तीर छोड़ती है तरकश के।
न जाने क्यों हो जाती हूँ
तुझसे मिलने को मैं पागल।
जब जब घुमड़ घुमड़ कर
घिर जाते है ये बादल।
दिल गाने लगता है तब
अनगिनत गीत प्यार के।
मन में हो जाते है पल्लवित
अंकुर तेरे मेरे प्यार के।
जब जब बरखा की बूंदें
तीर छोड़ती है तरकश के।
बारिश में भीगता मेरा तन
मन है तेरे गलियारे में।
आकर थाम लो मेरा हाथ
कहीं बह न जाऊं फिसल के।
मन में हो जाते है पल्लवित
अंकुर तेरे मेरे प्यार के।
जब जब बरखा की बूंदें
तीर छोड़ती है तरकश के।