अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
हर उलझन को समेटे हुए मन
अपनो से ही होकर अनबन
सुलगाता भीतर ही भीतर
अपना ही तन - बदन
वक़्त की हर मार से
ख़ामोशी भरा ये जीवन
हर कश्मकश में डुबाता
चला जा रहा ये मन
बेइलाज से हर रिश्ते
चंद जरूरतों में ही दम तोड़ देते है
न जाने किस सफ़र के लिए
अपना मुंह मोड़ लेते हैम
इसलिए
जो बे कहे ही साथ देने को
हो जाएं तैयार बेफ़िक्री से
वहीं अनकहे रिश्ते भले होते हैं।
