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ashok kumar bhatnagar

Tragedy Classics

4  

ashok kumar bhatnagar

Tragedy Classics

अनकहा अल्फाज़

अनकहा अल्फाज़

2 mins
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मैंने कभी न सोचा था,

अनकहा अल्फाज़ मेरी किस्मत में होंगे,

समय ने बिना कहे ही सिखा दिया,

लोगों ने भी इस्तेमाल किया,

कूड़े की तरह फेंका,

मैंने कुछ ना कह पाया,

क्योंकि मैं कुछ अनकहा अल्फाज़ हूँ।


अनकहा अल्फाज़ मेरी कहानी कहता हैं,

किस्मत  के कभी संग रहा, कभी दूर ले गई,

समय की धारा में बहते हुए,

लोगों की निगाहों में पलते रहे,

कूड़े की तरह फेंका गया हूँ मैं,

कहीं ना कहीं मेरी आत्मा में बसा अजनबी सच,

मैं कुछ ना कह पाया हूँ,

क्योंकि मैं वह अनकहा अल्फाज़ हूँ।


ज़िन्दगी के पथ पर, अनकहा अल्फाज़ बिखरे हैं,

किस्मत के खेल में, कभी मैं चमका हूँ,

समय की लहरों में, कभी मैं बहा हूँ,

लोगों की भीड़भाड़ में, कभी मैं गुम हुआ हूँ,

कूड़े की तरह फेंका गया हूँ मैं,

मैंने कुछ ना कह पाया हूँ,

मैं वह अनकहा अल्फाज़ हूँ, जो अब आपके सामने हूँ।


जिंदगी की कहानी, अनकहा अल्फाज़ से भरी,

किस्मत के खेल में, समय ने भी जादू बिखेरी,

लोगों की नजरों में, कूड़े की तरह फेंका हुआ,

मैं कुछ ना कह पाया, फिर भी हर रोज़ बहुत कुछ सीखा,

मैं वह अनकहा अल्फाज़ हूँ, सब्र और हौसले से भरी।


जिंदगी के इस सफर में, अनकहा अल्फाज़ मेरी कहानी,

किस्मत के चक्कर में, समय ने बहुत कुछ सिखाया,

लोगों की भीड़भाड़ में, मैं कूड़े की तरह गिरा,

कुछ ना कह पाया, पर आत्म-समर्पण से जिया,

मैं वह अनकहा अल्फाज़ हूँ, सच्चाई के सफर में महका।


जीवन की कहानी, अनकहा अल्फाज़,

किस्मत के चक्कर में, समय ने हर रोज़ बहुत कुछ सिखाया,

लोगों की माया में, मैं कूड़े की तरह बिखरा,

कुछ ना कह पाया, पर आत्म-संयम से जिया,

मैं वह अनकहा अल्फाज़ हूँ, सत्य की गहराइयों से उठा।


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