अनजाना सा एहसास
अनजाना सा एहसास
जिसके परछाई से दिल चहक उठता था
जिसे देख कर मुस्कुराती ही रह जाती थी तो,
उसके झलक से क्यूँ? ये आँसू थमती ही नहीं,
क्यूँ? मेरा ये बेपनाह इश्क़ बदनाम सा हुआ है, आज फिर एक अनजाना सा एहसास हुआ है।
एक वही तो मेरा अपना है, इस जहां में,
फिर आज वो क्यूँ? पराया सा महसूस हुआ है,
जिसके छुअन से मैं हर बार नई हो जाती थी,
तो उसके छुअन से क्यूँ? ऐतराज़ सा हुआ है, आज फिर एक अनजाना सा एहसास हुआ है।
आज भी नींद उसे याद करने से ही आती है,
सुबह देर तक सोए रह जाने पर आज भी,
उसके ही ख्वाब मुझे नींद से जगाते है तो
उस ख़्वाब से क्यूँ? दिल ये उदास सा हुआ है? आज फिर एक अनजाना सा एहसास हुआ है।
मेरी हर दुआओ में उसका ही जिक्र होता था,
हर पहर उसे ही तो ख़ुदा से मांगा था मैंने, तो वो शख्स क्यूँ? किसी औऱ के नाम हुआ है?
बताओ न मेरा इबादत क्यूँ? इल्ज़ाम सा हुआ है, आज फिर एक अनजाना सा एहसास हुआ है,
उसकी तस्वीर को देख जी चाहता है,
बेफिक्र होकर दिल की सारी बातें कह दूँ, पर
बेज़ुबान होकर उसकी तस्वीर से यूँ लिपट सी जाती हूँ मेरी बातों ने ही क्यूँ? मुझे बेजुबां किया है,
आज फिर एक अनजाना सा एहसास हुआ है।