अनजान प्यार
अनजान प्यार
अनजाना एक छवि है मेरे दिल में,
प्यार ही प्यार दिख रही है उसमें।
नाज़ुक बदन की है वो मलिक्का,
पांव में डाले चांदी की पायल छमके।
नींद में मेरे धड़कनों संग वह गीत गाती,
बेशुमार प्यार से मुझे है वह थपथपाती।
आँखें खुलते ही मैं उसे ढूंढता हूं,
पर वह कहीं दिखाई नहीं देती है।
मन में उसके प्यार कि खुशबू रहती है,
फिर उसकी भोली सूरत मुझे शांत करती है।
एक आनंदपूर्ण खुशी मिलती है,
हुस्न की मलिक्का फिर हसती है।
फिर बिजली की चमक सी गुम हो जाती है,
शानदार जलवा की तरंग छोड़ जाती है।
उसके प्यार के लिए आंखों से अश्रु बूंद टपकते हैं,
और तुरन्त ही वह ममता की छांव देती है।
तब संदीप के हौसले उड़ान भरते हैं,
मलिक्का प्यार कि एक मुस्कान देती है।