अँधेरे उजाले तुम्हारी सौगात
अँधेरे उजाले तुम्हारी सौगात
तुम्हें लगता है
तुमने मुझे सौगात में
अंधकार बाँट दिया..!
ध्यान से देखा
नहीं क्या तुमने..?
संभव है
तुम इतने ख़ुश थे
अपने गफलत से
मेरे हिस्से में नूर है
तुमको दिखाई नहीं दिया..!
होता भी क्यूँ ना
यह सोच भी
तुम्हारे दस्तरस से दूर था...!
बेशक़...
सौगात दिया था तुमने अंधेरों का
मैंने उसमें तुम्हारा ही नूर तलाश लिया
अब देखो ना जा रही हूँ उजाले की ओर
पर तुमको दिखा नहीं तुम मग़रूर जो थे..!
