अनाम ख़त
अनाम ख़त
लिखा जो ख़त तुझे
भेजूं किस पते पे
मुझे ये पता नहीं
पर पता है इतना
इसको पहुंचाना है
तुम तक
हर उस तसव्वुर संग
जिसे क़ैद क्या किया है, मैंने
अपनी आंखों में,
अपनी बातों में,
अपनी सांसो में,
कभी तुम संग प्रेममय होकर,
कभी यूं ही संगीतमय होकर,
कभी तुम संग लड़-झगड़ कर
कभी तेरे रूठने मेरे मनाने
और मेरे रूठने तेरे मनाने पर,
कभी तुम संग बहुत उदास होकर
कभी तुम संग यूंही हास्य रस में
सराबोर होकर,
कभी तुझ संग विचार मग्न होकर,
हर एक भाव जिसे मैंने
तेरे तसव्वुर में गढ़ा है।
पहुंचाना है इन्हें अब तुम तक
तसव्वुर से निकाल कर
नव जीवन की आस पहनाकर।
सोचती हूं कैसे? तुझ तक
अपना ख़त मैं पहुंचाऊं,
कैसे तुझे अपने हर एक भाव
से अवगत कराऊं।
तेरा पता अभी तक मुझे मिला नहीं
मैं अपना ख़त भेज रही हूं,
तुम तक हवाओं के आंचल में
भर लेना तुम इसे अपने, आगोश में
और पहुंचा देना, हकीकत के धरातल में।
मुझे लग रहा है हवाओं ने
मेरा ख़त तुम तक, अवश्य ही पहुंचाया है।
वो देखो!
हमारे अथाह प्रेम की
सत्य साक्षी
ये हवा बह रही है
झूम झूम कर मतवाली होकर।।