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Baman Chandra Dixit

Inspirational

4.7  

Baman Chandra Dixit

Inspirational

अल्प आराम

अल्प आराम

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आज क्यों चुप रहने को जी चाहता है

थका नहीं मगर रुकने को जी चाहता है।


ये भाग दौड़ अफरा तफ़रिओं को छोड़

तालाब मे पानी सा कैद रहने को जी चाहता है।


बहुत दिनों से नींदों को छलते आ रहा था

आज एक लंबी जम्हाई खाने को जी चाहता है।


सूरज उगता है रोज़ मेरे जगने से पहले

कल सूरज को जगाने को जी चाहता है।


दिया से रोशनी मिलता, जलाते हैं हर कोई

रोशनी कहां है, दीया जलाने को जी चाहता है।


तलासने निकले तो चाँद भी नंगा आज

मगर चांदनी को पर्दे में देखने को जी चाहता है


मत पूछो चुप हूँ मैं, कुछ भी बोलूंगा नहीं

आज तुझे अनदेखा करनेको जी चाहता है


पहचानोगे कैसे तुम अनसुनी नज़्मों का नगमा

परख की ललक जगाने को जी चाहता है।


दर्द बेरहम है बहुत महसूस कर चुका हूँ मैं

तेरी खीझ से आज रीझने को जी चाहता है।


जान बूझ कर रुका था फिर चल पडूंगा

थका नहीं हूं मगर रुकने को जी चाहता है।


पूर्ण विराम तक बहुत लफ्ज़ शेष है अभी,

एक अल्प आराम सा विराम को जी चाहता है।


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